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Sunday 31 December 2017

ज्ञान व अनुभवो की कुंजी से खोले 2018 का ताला ...



कहते है ज्ञान से बड़ा कोई खज़ाना नही है , कोई ऐसी दौलत नही है जो ज्ञान को खरीद सके , ज्ञान जिसे कोई चुरा नही सकता । क्यों कह रहा हूँ मैं ...आखिर ज्ञान को ही सर्वोत्तम क्यों माना गया है । ज्ञान की परिभाषा को परिभाषित करना यानी सूरज को दिए दिखाने जैसा है । 

बात जब 2017 को अलविदा कहने की चल रही है। हर किसी मे यह बताने की झलक दिख रही है कि उस अमुक व्यक्ति ने वर्ष 2017 में किन उपलब्धियों पर फतह हासिल की और उन्होंने क्या खोया ... हर किसी ने अपने बीते अतीत और आने वाले भविष्य पर मनन करना शुरू कर दिया है । आपके मन मे सवाल उठ रहा होगा आखिर मैं ऐसा आपको क्यों बता रहा हूँ ....

2017 मेरे लिए उन शब्दों में से एक है जिसे कहकर तो नही बताया जा सकता । लेकिन अपने अतीत को शब्द दे पाना भी नए वर्ष के जश्न में चारचांद लगा देने जैसा होता है । 2017 ने मुझे जो दिया वह किसी ऐसे ख़ज़ाने से कम नही है जिसकी लालसा छोड़ मनुष्य उस शोहरत के पीछे भागता है जोकि भौतिक है अल्पसमय मात्र का एक वस्तु है लेकिन उन सबसे ऊपर उठकर एक इसी दौलत है जिसे ज्ञान कहा गया है ।

बीते कई वर्षों की तरह आज भी मेरे पास कोई जमा पूंजी नही है । ना ही कोई धन दौलत । है तो बस ज्ञान ,अनुभव ,और कुछ और प्राप्त कर लेने की लालसा से ओत प्रोत मेरा मन ,जिसके अंदर ना तो कोई प्रेम धुन बज रही है और ना ही नए वर्ष के जश्न में डूबी महफ़िल का कोई साथी । लेकिन उससे बढ़कर आज मेरे पास कोई साथी है तो वह ज्ञान का भंडार अर्जित कर उसमे निरंतर कुछ नया करने का प्रयास जिससे मैं उस ख़ज़ाने को भर सकूँ जो अनंत है । अद्वितीय है । अकल्पनीय है । एक ऐसा महासगार जिसमे कोई भी गोता लगा सकता है । 

मेरे कहने का उद्देश्य यह है कि आप वर्ष भर ज्ञान अर्जित करते रहिए , क्योंकि भौतिक जीवन मे जो कुछ आप प्राप्त करते है उनमें सबसे महान और उच्च स्थान पर ज्ञान को रखा गया है । जो ज्ञानी है उसके सामने सभी नतमस्तक होते है । 

( लेखक के अपने विचार )

आभार 

अभिषेक सावन्त श्रीवास्तव

नए वर्ष की आप सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं आपका नया वर्ष मंगलमय हो ।

Wednesday 27 December 2017

कल्पनाओं के गांव का स्वाद चखते नगरवासी ...



कहा जाता है तीनो लोको का स्वर्ग कही परिलिक्षित होता है तो वह है "गांव" । जी हां ये मैं नही कह रहा ,हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चारो वेद , पुराणों ,महाकाव्यों के साथ हिंदी ,साहित्यकारों की रचनाओं में गांव एकसुर में बसता है। जिसके दर्शन को स्वयं देवता स्वर्ग से गाँव खेत खलिहानों के विचरण को धरती पर आते है और भाव विभोर होकर स्वर्ग लोक में धरती के स्वर्ग का बखान करते है जिसका वर्णन पुराणों में लिखा गया है।  


विश्व मे भारत देश को कृषि प्रधान देश की संज्ञा दी गयी है । क्योंकि आज भी भारत देश मे गाँवों में सबसे ज्यादा आबादी निवास करती है जोकि व्यवसाय ,उद्योग ,खेती से अनाज उगाना जैसे अनेक संसाधनों से परिपूर्ण रहे है लेकिन जैसे जैसे समय बदलता गया ,नए परिवेश में व्यक्ति ने गाँवों से पलायन कर नगरों में उस व्यवसाय की खोज शुरू कर दी जोकि गाँवों में प्राचीनकाल से मौजूद है । विडंबना यह है कि व्यक्ति के सामने जो कुछ होता है वह उसे स्वीकार ना करके उस तरफ़ भागता है जहां जाने पर वह कभी नही लौटता । 


जी हां मेरा कहना इसलिए उचित हो सकता है क्योंकि आज मैंने कुछ ऐसा ही महसूस किया । गाँवों से नगरों में पयालन कर रह रहे लोगो मे गाँवों की संस्कृति को करीब से जुड़ते देखा । मिट्टी के घरों में तांक झांक तो कभी गायों के बछिया के साथ खेलना और फिर गांव के मध्य में बने शिव मंदिर पर नतमस्तक होना।  जहां ना कोई धर्म दिखा ना कोई जातिपाति । लेकिन यह क्या ....यह तो छणिक भर के लिए कल्पना मात्र का वह गांव जिसको प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है में जोकि एक समय अंतराल के बाद उजड़ जाएगा । 

प्रदर्शनी में आये एक वरिस्ठ नागरिक से मैंने उत्सुकता से जानना चाहा कि क्या यह वही गांव है जिसमे आपका बचपन बीता । तकरीबन 90 वर्ष के हो चुके बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा यह दुर्भाग्य है कि आज गाँवों की सुंदरता को छोड़ आये लोग प्रदर्शनी में गाँवों के स्वाद को चखने का प्रयास करते है ।

  उत्सुकता इतनी की मैं तस्वीरों में मशगूल हो गया कि अचानक एक तकरीबन 15 वर्ष की छोटी बच्ची ने मेरे प्रश्नों के एक जवाब में कहा कि गाँवों में भी नगरों की तरह सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए । जिनके साथ उनकी माँ ने भी बिटिया के सुर में सुर मिलाये । 

सवाल यह उठता है कि क्या क्षणिक भर की कल्पनाओं से ही स्वर्ग दर्जा प्राप्त गाँवों की सूरत बदली जा सकती है। नगरों में लगने वाली प्रदर्शनियों में सेल्फी लेने वाले लोग गाँवों में जाना आखिर क्यों पसंद नही करते ....इन सवालों के जवाब की तलाश अब जरूर शुरू हो गयी है .....



धन्यवाद

(लेखक के अपने विचार)

अभिषेक सावन्त श्रीवास्तव

#कृपया_अपने_विचार_जरूर_साझा_करें ।

Saturday 16 December 2017

समाज मे परिलाक्षित हो धार्मिक सांस्कृतिक धरोहर ,विश्वविद्यालय ने परिसर में किया अनोखा प्रयोग



यह तस्वीरे है अवध प्रान्त की राजधानी रही डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फ़ैज़ाबाद के परिसर के दीवारों की, जिनपर मनोहारी दृश्यों का चित्रण बगीचे में खिले मनमोहक फूलों की तरह विश्वविद्यालय को सुगंधित कर रही है । अयोध्या फ़ैज़ाबाद की अवध संस्कृति को परिलाक्षित कर रही दीवारे ऐतिहासिक सांस्कृतिक दृश्यों से परिपूर्ण हो विश्वविद्यालय कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के भागीरथी प्रयास को दर्शा रही है ।



नवांकुरित कलाकारों के अनूठे प्रयास ने विभिन्न कॉलेजो , संस्थानों व परिसर में फाइन आर्ट्स के पाठ्यक्रम के छात्र छात्राओं ने अपने अनुभवों को एक माला में पिरो एक नया अध्याय भी लिख दिया है । दीवारों में ब्लॉक में अयोध्या फ़ैज़ाबाद की धार्मिक विरासत , संस्कृति , ऐतिहासिक धरोहरो , राम की पैड़ी के साथ साथ त्रेता युग से लेकर कलियुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आदर्शों का चित्रण कर समाज मे एक संदेश दिया है कि कला के माध्यम से क्षीण हो रही संस्कृती को प्लास्टिक पेंट कुंची से दर्शा स्वयं में मार्गप्रशस्त कर रही है । 



विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के प्रयास से 5 नए पाठ्यक्रमो में बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स के कुशल शिक्षकों के माध्यम से छात्र छात्राओ ने परिसर की दीवारों पर श्री राम के आदर्शों के साथ धार्मिक मंदिरो पौराणिक स्थलों को चस्पा कर दिया है । प्रदेश में अपनी कला का लोहा मनवा चुकी अयोध्या की संस्था दीपा लोक कला संस्थान के कलाकारों ने सप्ताह भर कड़ी मेहनत से अयोध्या फ़ैज़ाबाद को कुंची के माध्यम से रूपायित करने का भरपूर प्रयास किया है । जिसमे साकेत महाविद्यालय ,गुरुनानक गर्ल्स कॉलेज के साथ अन्य कॉलेजो के नवांकुरित कलाकारों ने अपना परिचय लोक कलाओं को रूपायित कर दिया है । 


फाइन आर्ट्स की शिक्षिका पल्लवी सोनी ने लेखक से अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि फ़ैज़ाबाद अयोध्या की संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत की बारीकियों को समझने के बाद नए पाठ्यक्रम में शिक्षा ले रहे छात्रों से परिसर की दीवारों पर प्लास्टिक पेंट से चित्रण करवाना चुनौती पूर्ण रहा साथ ही शिक्षिका रीमा सिंह ने गौरवान्वित होते हुए कहा कि नए पाठ्यक्रम में प्रवेश लिए छात्रों ने सहज मन से सकुशलता पूर्वक अपने कार्यो को निभाया और अवध की धार्मिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत व लोक कलाओं को परिलाक्षित किया । 



दीपा लोक कला संस्थान की संचालक दीपा सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय में उनके संस्थान से आये कलाकारों ने पहली बार दीवारों पर ऐस चित्रो का चित्रांकन किया। अनुभवो की बात करे तो चुनौती से भरे कार्य में कम अनुभवो के साथ दीपा लोक कला के संस्थान के बच्चो ने बड़ी तन्मयता के साथ अपनी चुनौती को पूरा किया साथ ही नए अनुभव के साथ विश्वविद्यालय में कुलपति अवध विवि के निर्देशन में अनुभवित हुए । 

विश्वविद्यालय में 6 महीनों में कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने विश्वविद्यालय के भविष्य में कई ठोस व प्रगतिशील कदम उठाए है ऐसे में जब लेखक ने कुलपति अवध विश्वविद्यालय से परिसर की दीवारों पर अंकुरित की गई चित्रकारी पर बातचीत में बताया कि विश्वविद्यालय में सालो से टूटी जर्जर दीवारों पर एक प्रयोग किया गया । विश्वविद्यालय समाज सापेक्ष हो सके इसका भी पूरा ध्यान रखा गया। फ़ैज़ाबाद अयोध्या के प्रमुख स्थलों को 300 ब्लॉकों के 70 ब्लॉकों में दर्शाया गया है जिसने समाज मे यह भी संदेश दिया कि विश्वविद्यालय समाज का एक अभिन्न अंग है ।



अभिषेक सावन्त श्रीवास्तव 

मेरे द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री भी लिंक पर क्लिक करके यहाँ से देख सकते है 

 https://youtu.be/R35w5vGUs3Q